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ब्रेकिंग ललितपुर सदर कोतवाली अंतर्गत राजघाट रोड पिसनारी पर मकान का छज्जा गिरने से दो लोगों की मौके पर मौत और कुछ घायल मौके पर डायल हंड्रेड
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मोदी की जीत से बदला 'टाइम' का सुर, नई रिपोर्ट में लिखा- देश को एक सूत्र में पिरोने वाला पीएम
लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले प्रचार के अंतिम चरणों के दौरान विश्व विख्यात टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक कवर स्टोरी की थी। जिसमें उन्हें डिवाइडर-इन-चीफ (देश को तोड़ने वाला मुखिया) की उपमा दी गई थी। ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी पत्रकार आतिश तासीर ने उक्त रिपोर्ट लिखी थी।
लेकिन अब उसी टाइम मैगजीन के सुर पूरी तरह से बदल गए हैं। भारतीय जनता पार्टी को मिले प्रचंड बहुमत और नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता के बाद पत्रिका ने प्रधानमंत्री की तारीफों के पुल बांधने वाला एक लेख अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया है। इस नए लेख में कहा गया है कि "मोदी ने भारत को जिस तरह से एकजुट किया है वैसा दशकों में कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया" है। इस लेख में पिछली बार के मुकाबले यू-टर्न है। पर ये लेख मैगजीन की कवर स्टोरी नहीं है। इस बार टाइम के कवर पेज पर अमेरिका की डेमोक्रेट नेता एलिजाबेथ वॉरेन को जगह मिली है। वॉरेन वहां के राष्ट्रपति चुनाव में दावेदार हैं।
मनोज लाडवा के इस लेख में बताया गया है कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा अपमानजनक, चोट पहुंचाने वाले और निम्न भाषायी स्तर का प्रदर्शन हुआ। जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने समाज के हर तबके की बात करने की कोशिश की। मैराथन गति से चले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और उनकी नीतियों को कई प्रकार की आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं।
लेकिन अब उसी टाइम मैगजीन के सुर पूरी तरह से बदल गए हैं। भारतीय जनता पार्टी को मिले प्रचंड बहुमत और नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता के बाद पत्रिका ने प्रधानमंत्री की तारीफों के पुल बांधने वाला एक लेख अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया है। इस नए लेख में कहा गया है कि "मोदी ने भारत को जिस तरह से एकजुट किया है वैसा दशकों में कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया" है। इस लेख में पिछली बार के मुकाबले यू-टर्न है। पर ये लेख मैगजीन की कवर स्टोरी नहीं है। इस बार टाइम के कवर पेज पर अमेरिका की डेमोक्रेट नेता एलिजाबेथ वॉरेन को जगह मिली है। वॉरेन वहां के राष्ट्रपति चुनाव में दावेदार हैं।
मनोज लाडवा के इस लेख में बताया गया है कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा अपमानजनक, चोट पहुंचाने वाले और निम्न भाषायी स्तर का प्रदर्शन हुआ। जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने समाज के हर तबके की बात करने की कोशिश की। मैराथन गति से चले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और उनकी नीतियों को कई प्रकार की आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं।
लेकिन पिछले पांच दशकों में कोई भी ऐसा प्रधानमंत्री भारत ने नहीं देखा, जिसने देश को चुनाव के दौरान एकजुट कर लिया हो। मोदी से पहले सन 1971 में इंदिरा गांधी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था। उस समय उन्हें पूरे देश से लगभग 50 फीसदी मत प्राप्त हुए थे। मोदी को मिला जनादेश न केवल उन्हें सत्ता में वापस लेकर आया है, बल्कि उनकी स्थिति को पहले से ज्यादा मजबूत भी बनाया है। पूरे चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि मोदी फैक्टर ने बरसों से चले आ रहे जाति फैक्टर और वर्ग विभाजन को धुंधला कर दिया है।
नरेंद्र मोदी देश के एक ऐसे तबके से आते हैं, जो बेहद गरीबी और अभावों में जीता है। उन्होंने जिस तरह से फर्श से अर्श तक का सफर पूरा किया है, उससे देश का गरीब और मध्य वर्ग उन्हें अपने बीच का मानता है और आदर्श के रूप में देखता है। जबकि 72 वर्षों तक देश की बागडोर संभालने वाला नेहरू-गांधी परिवार इस तरह के अनुभव से वंचित ही रहा है।
नरेंद्र मोदी की दोबारा जीत इस बात का सबूत है कि भारतीय जनता ने काम के बदले जीत का तोहफा दिया है। इसका श्रेय उन नीतियों को जाता है, जिनका सीधा असर देश की गरीब जनता पर पड़ा और उन्होंने बदलाव को महसूस किया। मोदी सरकार की प्रगतिशील नीतियों का ही नतीजा रहा कि देश के हिंदू और अल्पसंख्यकों की गरीबी तेजी से घटी है। जबकि पूर्ववर्ती सरकारों में यह दर काफी धीमी थी।
नरेंद्र मोदी देश के एक ऐसे तबके से आते हैं, जो बेहद गरीबी और अभावों में जीता है। उन्होंने जिस तरह से फर्श से अर्श तक का सफर पूरा किया है, उससे देश का गरीब और मध्य वर्ग उन्हें अपने बीच का मानता है और आदर्श के रूप में देखता है। जबकि 72 वर्षों तक देश की बागडोर संभालने वाला नेहरू-गांधी परिवार इस तरह के अनुभव से वंचित ही रहा है।
नरेंद्र मोदी की दोबारा जीत इस बात का सबूत है कि भारतीय जनता ने काम के बदले जीत का तोहफा दिया है। इसका श्रेय उन नीतियों को जाता है, जिनका सीधा असर देश की गरीब जनता पर पड़ा और उन्होंने बदलाव को महसूस किया। मोदी सरकार की प्रगतिशील नीतियों का ही नतीजा रहा कि देश के हिंदू और अल्पसंख्यकों की गरीबी तेजी से घटी है। जबकि पूर्ववर्ती सरकारों में यह दर काफी धीमी थी।
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